विभाग का संक्षिप्त परिचय
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सेस्थाई सामाजिक-आर्थिक विकास कीप्रक्रिया में भारत कोअनेक कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। यह एकसच्चाई है कि भारत कुछ बड़ी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सकता है, विशेष रूप से खाद्य उत्पादन हेतु स्व-सामर्थ्य प्राप्त करने में।जैसा किहम जानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्थाआज अत्यंत विरोधाभासी तस्वीर प्रस्तुत करतीहै।हम अंतरिक्ष अनुसन्धान और नाभिकीय तकनीकी में तीव्र प्रगति कर रहे हैं,जो कृषि औरऔद्योगिक उत्पादन आदि को बढ़ाते हैं,इसके द्वारा भारत को विकसित देशों केबाद विश्व में तीसरे स्थान पर होने की रंगीन तस्वीर देखते हैं।वहींदूसरी ओरअत्यंत गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, निरक्षरता और बेरोज़गारीकी बढ़ती दर हमें परेशान कर रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग आर्थिकरूप से पिछड़े हुए हैं और स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन, संचार, सुरक्षित पेय जल, भोजन, वस्त्र, आवास आदि जैसी मूलभूतसुविधाओं और आवश्यकताओं सेवंचित हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें से अधिकतर गरीबी, अशिक्षा, अज्ञानता और खराब स्वास्थ्य की ओर उन्मुख हैं। ग्रामीण क्षेत्र कीसमस्याओं को सुलझाने के लिए परंपरागत नौकरशाही सोच से हटकर एक पेशेवर सोचका होना आवश्यक है।पेशेवर तरीका ग्रामीण विकास का अभिन्न अंग होना चाहिए।इस दिशा मेंविशेषत: ग्रामीण विकास पेशेवरों को दक्ष बनाने हेतु, त्रिपुरा विश्वविद्यालय ने वर्ष 2004 में ग्रामीण विकास में एक-वर्षीयस्नातकोत्तर डिप्लोमा (पीजीडीआरडी) कार्यक्रम आरम्भ किया जिसे बाद में वर्ष 2006 में विस्तार देते हुए दो-वर्षीय मास्टर ऑफ रूरल डवलपमेंट प्रोग्राम (एमआरएमडी) के तौर पर उन्नत कर दिया गया।इस समय ग्रामीण विकास पेशेवरों को वैश्विक तौरपर सोचने व स्थानीय तौर पर कार्य करने की आवश्यकता है ताकि उनके कार्य को प्रासंगिक, उचित, अद्यतन, न्यायिक व सही सुनिश्चित किया जा सके।
स्थापना वर्ष
2006
विभागाध्यक्ष
डॉ. जयंत चौधरी