प्रो. देबराज पाणिग्रहि
विभाग प्रमुखविभाग का संक्षिप्त परिचय :
संस्कृत विभाग उन आरंभिक विभागों में से है जिसके साथ त्रिपुरा में कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत स्नातकोत्तर अध्ययन केंद्र वर्ष 1977 में प्रारम्भ हुआ था। राजतांत्रिक त्रिपुरा में संस्कृत साहित्य का संवर्धन प्रारम्भकाल से ही अपने चरम पर था। आधुनिक शिक्षा के आगमन के साथ, संस्कृत को महाविद्यालयों में स्नातक स्तर पर भी पढ़ाया जाने लगा। विभाग ने वर्ष 1977 में विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर बिस्वपति रॉय के तत्वावधान में संस्कृत का अध्यापन प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे पहले प्रोफेसर सीतानाथ डे और फिर प्रोफ़ेसर के. पी. सिन्हा ने विभाग को अपने नेतृत्व में आगे बढ़ाया। 2 अक्टूबर 1987 को त्रिपुरा विश्वविद्यालय के पूर्ण रूपेण अस्तित्व में आने के साथ ही प्रोफ़ेसर ज्योतिष नाथ ,प्रोफ़ेसर शीला पुरकायस्थ ,डॉक्टर शिप्रा रॉय तथा तत्पश्चात डॉक्टर चंदर कुमार चक्रबर्ती विभाग के सदस्य के रूप में सम्मिलित हुए। अनेक अतिथि व्याख्याताओं ने भी विभाग को लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी हैं। 60 छात्रों की प्रवेश क्षमता के साथ विभाग संस्कृत में स्नातकोत्तर पाठ्क्रम संचालित करता है जिसमें वेद, काव्य और दर्शन विशेष पत्रों के रूप में सम्मिलित हैं। कई प्रसिद्ध विद्वानों ने विभाग का निरीक्षण किया है और उनमें से कई ने यहाँ शैक्षणिक व्याख्यान भी दिए हैं। प्रोफ़ेसर रामरंजन मुखर्जी, प्रोफ़ेसर ध्यानेश नारायण चक्रबर्ती, प्रोफ़ेसर अशोक चटर्जी, प्रोफ़ेसर करुणासिंधु दास, प्रोफ़ेसर नबनारायण बंदोपाध्याय, प्रोफ़ेसर जी. एस. त्रिपाठी, प्रोफ़ेसर दीप्ति एस. त्रिपाठी आदि इनमें शामिल हैं।
शोध सुविधाएँ :
परास्नातक के पश्चात् विभाग में पूर्णकालिक छात्रों के लिए पूर्ण छात्रवृत्ति सहित शोध सुविधाएँ उपलब्ध हैं |
परीक्षाएं :
- एम.ए. (4 सत्रों में द्विवर्षीय कार्यक्रम )
- पीएच.डी. कार्यक्रम के लिए अनुसंधान पात्रता परीक्षा (आरईटी)
- पीएच.डी. कोर्सवर्क - (1 सेमेस्टर)
- अ.जा./अ.ज.जा. के छात्र त्रिपुरा विश्वविद्यालय के नेट कोचिंग केंद्र द्वारा आयोजित सुधार हेतु
- मुफ़्त विशेष कोचिंग कक्षाओं का लाभ उठा सकते हैं । प्रतिवर्ष अनेक अ.जा./अ.ज.जा. व
- अल्पसंख्यक विद्यार्थी स्नातकोत्तर अध्ययन हेतु संस्कृत का चुनाव करते हैं |
स्थापना वर्ष :
1977
विभागाध्यक्ष :
प्रो. देबराज पाणिग्रहि